जेएनयू विवादः विश्वविद्यालय को सालाना होता है 45 करोड़ का घाटा, विवि प्रबंधन ने रखा अपना पक्ष
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि जेएनयू में डीयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया से भी कम फीस ली जाती है। विश्वविद्यालय को सालाना करीब 45 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है।
हॉस्टल में गरीब परिवारों के छह हजार छात्रों में से 5371 को फेलोशिप व स्कॉलरशिप के माध्यम से मदद मिल रही है। पैसे की कमी के चलते वेतन, बिजली, पानी का खर्च निकालना मुश्किल था। इसी वजह से वर्षों बाद छात्रावास फीस बढ़ोतरी करने का फैसला लिया गया था।
विश्वविद्यालय प्रबंधन ने केंद्र सरकार की ओर से गठित उच्चस्तरीय समिति के कैंपस दौरे से पहले अपना पक्ष रखा है। हॉस्टल कमेटी ने फीस बढ़ोतरी का ड्रॉफ्ट सभी स्कूलों के डीन, वार्डन से लेकर हॉस्टल कमेटी (छात्रों की) के समक्ष रखा। अक्तूबर के पहले हफ्ते में वेबसाइट पर अपलोड करते हुए सभी से सुझाव मांगे थे। हालांकि किसी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई। इसके बाद 28 अक्तूबर को इसका प्रस्ताव इंटर हॉस्टल एडमिनिस्ट्रेशन बैठक में रखा गया।
विवि प्रबंधन का कहना है कि छात्रसंघ का दावा है कि इससे काफी संख्या में गरीब छात्र प्रभावित होंगे। वास्तविकता यह है कि पहले ही सर्विस चार्ज नहीं लिया जाता था। नुकसान को देखते हुए अब चार्ज लेने का निर्णय लिया गया है। जेएनयू में अभी भी अन्य केंद्रीय यूनिवर्सिटी से कम पैसे लिए जा रहे हैं। यहां छात्रों से डेवलपमेंट फीस नहीं ली जाती।
ठेका श्रमिकों का वेतन विवि को खुद करना होगा इकट्ठा
प्रबंधन के मुताबिक, ठेका श्रमिकों का वेतन विवि को खुद इकट्ठा करना होता है। यूजीसी से मिलने वाले फंड में से यह खर्चा नहीं निकाला जा सकता है। इसी के चलते जेएनयू हॉस्टल में काम कर रहे 450 कर्मचारियों का वेतन देने में प्रशासन सक्षम नहीं है। हॉस्टल के लिए सर्विस चार्ज लेने के अलावा विवि के पास कोई विकल्प नहीं है।
हॉस्टल में गरीब परिवारों के छह हजार छात्रों में से 5371 को फेलोशिप व स्कॉलरशिप के माध्यम से मदद मिल रही है। पैसे की कमी के चलते वेतन, बिजली, पानी का खर्च निकालना मुश्किल था। इसी वजह से वर्षों बाद छात्रावास फीस बढ़ोतरी करने का फैसला लिया गया था।
विश्वविद्यालय प्रबंधन ने केंद्र सरकार की ओर से गठित उच्चस्तरीय समिति के कैंपस दौरे से पहले अपना पक्ष रखा है। हॉस्टल कमेटी ने फीस बढ़ोतरी का ड्रॉफ्ट सभी स्कूलों के डीन, वार्डन से लेकर हॉस्टल कमेटी (छात्रों की) के समक्ष रखा। अक्तूबर के पहले हफ्ते में वेबसाइट पर अपलोड करते हुए सभी से सुझाव मांगे थे। हालांकि किसी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवाई। इसके बाद 28 अक्तूबर को इसका प्रस्ताव इंटर हॉस्टल एडमिनिस्ट्रेशन बैठक में रखा गया।
विवि प्रबंधन का कहना है कि छात्रसंघ का दावा है कि इससे काफी संख्या में गरीब छात्र प्रभावित होंगे। वास्तविकता यह है कि पहले ही सर्विस चार्ज नहीं लिया जाता था। नुकसान को देखते हुए अब चार्ज लेने का निर्णय लिया गया है। जेएनयू में अभी भी अन्य केंद्रीय यूनिवर्सिटी से कम पैसे लिए जा रहे हैं। यहां छात्रों से डेवलपमेंट फीस नहीं ली जाती।
ठेका श्रमिकों का वेतन विवि को खुद करना होगा इकट्ठा
प्रबंधन के मुताबिक, ठेका श्रमिकों का वेतन विवि को खुद इकट्ठा करना होता है। यूजीसी से मिलने वाले फंड में से यह खर्चा नहीं निकाला जा सकता है। इसी के चलते जेएनयू हॉस्टल में काम कर रहे 450 कर्मचारियों का वेतन देने में प्रशासन सक्षम नहीं है। हॉस्टल के लिए सर्विस चार्ज लेने के अलावा विवि के पास कोई विकल्प नहीं है।